केंसर का फ्री इलाज | जाने मेरा केंसर बिना किसी खर्चे के कैसे ठीक हुआ

जाने मेरा केंसर बिना किसी खर्चे के कैसे ठीक हुआ


आपके कैसे भी बीमारी हो रही हो मेरी गारंटी है की यदि आप इस तरीके को अपनाएँगे तो केंसर ही क्या दुनिया की हर बीमारी खत्म हो जाएगी


पढ़े मेरा पूरा इंटरव्यू

एंकर - नमस्कार सर
वक्ता - नमस्कार जी
एंकर - सर क्या नाम है आपका ?
वक्ता - राजवीर दास
एंकर - सर कहां से हैं आप?
वक्ता - सर, गाँव :- कछोरा, तहसील :- करावरीर, जिला :- आगरा.
एंकर - सर संत रामपाल जी महाराज से कब जुड़े आप?
वक्ता - 16 मई 2012
एंकर - सर संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने से पहले क्या आप भक्ति साधना भी करते थे ?
वक्ता - जी हां मैं पैदल गोवर्धन की फेरी लगाता था 84 ब्रज की परिक्रमा कभी वाहन से नहीं अब हमेशा पैदल जाता था, और एक संत से प्रकाश आनंद गिरि उनसे नाम दीक्षा भी ले रखी थी जी, ओम नमः शिवाय जिन्होंने मंत्र जाप के लिए मुझे दिया था उसका जाप भी करता था, और जितनी भी देवी देवता है त्रिलोकी की कि सारी पूजा करता था, और उसके बाद में जब समय बचता था तो जो गांव के देहाती सत्संग होते थे उनमें जाता था, अखंड रामायण जहां भी कहीं गांव में होती थी वहां पर मैं जाता था, और गांव में भी मेरा वो इतना हो गया  था कि जहां भी गुरुग्राम अखंड रामायण का प्रोग्राम होता था तो मुझे बुलाया जाता था, भगत जी हमारे यहां अखंड रामायण का प्रोग्राम है 4 घंटे से पहले मुझे अगर कोई हटा देता था तो मैं नाराज हो जाता था बोल देता था की भक्ति नहीं करने देते हो , रामायण नही पढ़ने देते, हो क्यों ला कर लाते हो मुझे ? ऐसी अटूट मतलब भक्ति में उसे समझता था जो त्रिलोकी देवों की भक्ति है, जिससे मुझे आज तक कोई लाभ नहीं हुआ , 84 की फेरी से केवल घुटनों में दर्द और एड़ियों में दर्द गोवर्धन की पैदल परिक्रमा जाने से केवल यही सारे दर्द-पीड़ बन चुके थे और मैं जब से कैंसर का पेशेंट का था.

एंकर - सर आपके बताए अनुसार आप बहुत ही कठिन साधक रहे, तो फिर आप संत रामपाल जी महाराज की शरण में कैसे आए?

वक्ता - सर मैं कैंसर का पीड़ित एक मरीज था, किसान आदमी था, मेरे पास ज्यादा पैसा भी नहीं था जितना भी पैसा था सारा इलाज में खर्च हो चुका था, करीब एक - दो लाख रुपये खर्च हो चुका था, और डॉक्टर हमेशा ऑपरेशन के लिए बोल देते थे लेकिन रिश्तेदार वगैरा मुझे कहते थे कि कैंसर* का ऑपरेशन होते ही ख़त्म हो जाते हैं, डॉक्टर रुपया भी दो- ढाई लाख मांगते थे उतना पैसा अब मेरे पास नहीं बचा था केवल सब्जी के लाइक मेरे पास पैसा था, और मैं पीड़ित होकर के चारपाई में पड़ा था इतना कमजोर हो चुका था कि नहाने की इच्छा नहीं करती थी भीगे हुए कपड़े से मालिश करता था शरीर पर! , एक बार ऐसा हुआ कि संत रामपाल जी महाराज के शिष्य एक गाड़ी लेकर पुस्तक सेवा करने के लिए मेरे गांव में आए, और मैं  चारपाई में पड़ा था, मेरा खेत सूख रहा था मेरी जमीन में खारा पानी था मेरा केवल नहर के भरोसे का खेत था मैं उस में सिंचाई करने के लिए परेशान था नहर बंद हो चुकी थी, खेत सूख रहा था तो मैं वहां घूम के आता था लकड़ी के सारे से, और आके जैसे ही चारपाई पर मैं लेटा, मैंने कानों से माइक की आवाज सुनी,  तो मैंने अपने छोटे बच्चे से कहा बेटे यह आवाज किसकी आ रही है बच्चे ने कहा पापा यह कोई गाड़ी पुस्तक बेच रही है, तो मैंने कहा कि बेटे एक पुस्तक ले आओ,  घर पर पैसा नहीं था मेरी घरवाली मेरे दर्द की दवा लाने के लिए ₹60 किसी पड़ोसन से मांग कर लाई थी, तो मैंने उससे कहा इसे ₹10 दे दो ,  उस समय मात्र ₹10 ले रहे थे जो गाड़ी में ज्ञान गंगा पुस्तक के लिए.
तो मैंने उससे कहा इसे ₹10 दे दो एक पुस्तक मंगा लो तो घरवाली झुंझुला करके कहने लगी, कि सारी अलमारी भरी पड़ी हुई है रामायण, सुख सागर, शिव पुराण, देवी पुराण, प्रेमसागर क्या- क्या भरा पड़ा हुआ है गीता भरी पड़ी हुई है और  ईतनी पुस्तकें से छिकते नहीं अभी एक पुस्तक और ले आओ, ₹60 पड़ोसन से मांग कर लाई हूं क्या इनको भी दे दोगे फिर हाय-हाय करोगे. दर्द की दवा किस से आएगी , सब्जी के लिए भी पैसा नहीं है.मैं बोला ! मैं परमेश्वर की कृपा से थोड़ा दर्द सहन कर लूंगा.
एक पुस्तक मेरे लिए मंगा दो, तब तो घरवाली ने झुन्झुला करके वह ₹60 फेक दिए, ले जाओ इनको भी फेक दो इनको जाकर के ले आओ पुस्तक सारे पैसों की, तो बच्चा एक पुस्तक लेकर आया और लाने के बाद मैंने उस पुस्तक को पढा़. तो मैं त्रिदेव का साधक था, ब्रह्मा विष्णु की उपासना करता था ओम नमः शिवाय का जाप करता था मुझे बड़ा अटपटा लगा तो मैंने उस पुस्तक को एक जहां मेरी सारी पुस्तकें रखी हुई थी उधर साइड में रख दिया बोल दिया बेटी इसे उधर रख दो बच्ची ने उसे ले जाकर के जहां में दीपक जलाता था और आरती वगैरा करता था पूजा वगैरा करता था उधर पुस्तक को रख दिया ले जाकर के. दूसरे दिन खेती की तरफ गया तो निराशा मिली नहर में पानी नहीं था सिचाई कोई साधन नहीं था. जब मैं घर पर आया मालिस की तो मैंने कहा बेटी मेरी वह थोड़ी श्रीमद भगवत गीता की पुस्तक दे  दो तो उसमें मैं थोड़ा अध्ययन कर लूं तो बच्ची ने ज्ञान गंगा नामक पुस्तक उठा कर के मेरे हाथ में दे दी. मैंने झुन्झुला कर बच्ची से कहा बेटी यह पुस्तक आपने मुझे क्यों दे दी, यह तो बकवास पुस्तक है मुझे वह दो श्रीमद्भगवतगीता बच्ची आलस से कहने लगी पापा आज इसी को पढ़ लो कल उसे पढ़ लेना.
तो दो- तीन पेज छोड़ने के बाद जब मैं उसे पढ़ने लगा तो उसमें जो मैंने शिवपुराण में अध्ययन किया वहीं चैप्टर मिले उन पेजो को मैंने देखा जिसमें लिखा हुआ था ज्ञान गंगा में की इतनी पेज में मैंने देखा कुछ गीता के अध्याय और पृष्ठ लिखे हुई मिले उनको भी मैंने देखा. एक आर्य समाजी आर्य समाज का प्रवर्तक था उसके पास भी जाता था वह कुछ वेदों की बातें बताता था मैं उस पुस्तक को लेकर के उसके पास पहुंचा तो मैंने उसको बताया कि तू गलत बताता था मुझे, तेरी तो ग़लत साधना है. यह देखो इस ज्ञान गंगा पुस्तक में क्या लिखा हुआ है , ज्ञान गंगा पुस्तक हो मैंने तीन बार पढ़ा. और मुझे कुछ राहत की सांस बीमारी में भी मिलने लगी और मेरे दिल में ऐसा उत्साह हुआ चाहना होने लगी कि मुझे इस संत के दर्शन करने चाहिए. ऐसे संत कहां मिलेंगे और मैं समझता था कि पीले कपड़े होंगे क्योंकि मैंने तो ऐसे ही संतों से मुलाकात की थी दाढ़ी- वाढ़ी बढ़ी होगी , बाल- वाल बड़े होंगे, मेरी लालसा उनसे मिलने के लिए ज्यादा लालायित होने लगी. और में कुछ परेशान होने लगा लेकिन बीमारी के कारण जाने में भी असमर्थ था, एक दिन मैंने सोचा कि आज कुछ भी हो मैं संत रामपाल जी महाराज के दर्शन करने के लिए अवश्य जाऊंगा. तो मैंने किसी को साथी बनाने के लिए खोजा लेकिन गांव में कोई साथी नहीं मिला. एक बाल्मिक जो कबीरपंथी बताते थे लेकिन उनका कबीर पंथ मतलब मुझे सुहावना नहीं लगा. वह कुछ बधाई- वधाई वगेरा कुछ गाते थे. तो मैंने उनको जाकर पूछा कि भाई आप कबीरपंथी हो मुझे एक कबीरपंथी की पुस्तक मिली है मुझे संत रामपाल जी के पास मुझे ले चलोगे. तब वह बोलता है कि कहां जाओगे आप हमारे पास आइए और अरोठा गांव में हमारे गुरु ज्ञान दास जी हैं उनसे आप दीक्षा ले लीजिए, जी नहीं मुझे यह स्वीकार नहीं है मैं अपने आप चल पड़ा और मैंने ज्ञानगंगा को साथ में रखा , ज्ञान गंगा में से एक फोन नंबर मुझे मिला, और मैंने उनसे फोन किया कि सर यह फोन नंबर आपका है एक बार मूड में आया कि ऐसा तो नहीं यह लोग इन्होंने सेट कर रहे हो कि फोन नंबर इन्होंने दे दिए हो ईनको, तो इससे ज्यादा ग्राहक इन के पास आते रहे कुछ ना कुछ तो वहां जाके चलाना पड़ता होगा. तो इनकी आमदनी बनी हुई हो इस तरीके से लेकिन फिर भी अंदर से कुछ ना कुछ भावना हुई कि एक बार चल कर देखो निजामुद्दीन दिल्ली से उतर के मैंने कुछ देखा नहीं था और थोड़ा पैदल आगे गया मैंने पूछा कि साहब
 मुझे हरियाणा जाना है, हरियाणा मैं कैसे पहुंचूंगा. तो एक सज्जन ने कहा कि आप उधर रोड पर पहुंच जाइए बस को हाथ मार देना और वह बस आएगी और आप आईएसबीटी पहुंच जाना वहां से आप पहुंच जाओगे. उसके बाद जब मैं वहां गया तो मुझे अनुभव नहीं था कि नंबर से गाड़ियां जाती है मैं देहाती आदमी था तो हर बस को हाथ देता था लेकिन बस रुकती नहीं थी पर प्रभु ने मुझे इतनी सामर्थ्य दे दी कि निजामुद्दीन से आईएसबीटी तक मैं पैदल-पैदल चला गया. और मैंने जाकर कंडक्टर से पूछा कि मुझे हिसार जाना है और बरवाला पहुंचना है, तो कंडक्टर ने मुझे ₹90 का टिकट दे दिया और मैं उसे लेकर के चला.गया जाने के बाद, हाँ वह पैसे भी मुझे उस बाल्मिक से मिले थे जो कबीरपंथी बनता था पैसे भी मेरे पास ज्यादा नहीं थे अब ले कर चला गया उसने मुझे बरवाना बस स्टैंड पर उतार दिया रात का 1:00 बजा हुआ था तो मैंने पूछा कंडेक्टर से सर मुझे बरवाला आश्रम पर जाना है संत रामपाल जी के आश्रम पे.
वहां कैसे पहुंचूंगा, तो बोलता है एक नंबर खिड़की पर चले जाओ वहां पर आपको चंडीगढ़ जाने वाली बस मिलेगी उससे निकल जाना तो मैं जब वहां, तो खिड़की वाले ने बोल दिया कि अब बस नहीं मिलेगी टाइम ओवर हो चुका है 12:00 बजे तक ही बस चलती है. तो मैंने सोचा  परमात्मा ने जब निजामुद्दीन से  आईएसबीटी तक पैदल आए तो यहां से भी ले जाएंगे, मैं पैदल- पैदल वहां से चल दिया चलने के बाद मेरे तो यही भ्रम था की कहीं झोपड़ी वगैरा बनी हुई होगी कोई झंडे वगैरा लगे हुए होंगे. आश्रम मुझे मिला उसमें लाइट वगैरा जली हुई थी लेकिन मैंने उसे किसी की कोठी वो समझा और आगे निकल गया. और निकल कर के जब मैं परेशान हो गया चलते-चलते रात के दो - ढाई बज चुके थे. मैंने फिर साहब को फोन किया तो गाड़ी में बिठा कर ले गए और मैं नशा बहुत करता था तंबाकू खाता था कुबेर नाम की और बीड़ी पीता था . हुक्का भर के तंबाकू भी पीता था. शादी पार्टियों में दारू वगैरा भी इस्तेमाल कर लिया करता था. उसके बाद जब आश्रम में पहुंचा तो घर से पूरे भर के तंबाकू बंडल वगैरा ले गया था तो आश्रम में गाड़ी ने मुझे छोड़ा कि अंदर चले जाओ जी तो एक भगत जी वहां पर मिले, वो रामपाल जी महाराज के शिष्य थे, उन्होंने मेरी तलाशी ली और देख कर के कहा आप तो नशा बहुत करते हो. मैंने बोला जी हां, कि यहां तो मुक्ति मार्ग  है नशा मार्ग तो नहीं है. भगत जी आप ऐसा करो यह बिड़ी वगैरा इस डब्बे में डाल दो, बिड़ी तम्बाकू.
मैं बोला साहब मैं इसके बिना जी नहीं सकता यह तो मेरी आखरी सांस के साथ जाएगी और इसके बिना तो मेरे बहुत गैस बनेगी मेरे बहुत पेट में दर्द होगा मैं व्याकुल हो जाऊंगा, भगत जी ने मुझे समझाया कि ठीक है जब व्याकुल होंगे तब हम आपको देंगे निकाल कर देंगे. इस डिब्बे में रख दो उसके बाद पहले दिन में सत्संग सुना दर्द में कुछ राहत मिलने लगी लेकिन समझ में कुछ नहीं आया, दूसरे दिन कुछ भगत लोग वहां मिले और मेरे  भी कुछ समझ में धीरे-धीरे आने लगा. भक्तों ने मेरे से परेशानी पूछी मैंने उनको प्रॉब्लम बताई. और उन्होंने मुझे समझाया , की आप किसके साथ आए हो. मैं बोला साहब मैं तो ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़ने से आया हूं इतने भक्तों की पीड़ा ठीक हो गई , परमात्मा हो सकता है मेरी भी पीड़ा ठीक करें. तो इन संत जी की शरण में आया हूं तो उन्होंने बोला आप नाम दीक्षा लो आपको तुरंत आराम मिलेगा, उसके बाद दूसरे दिन संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा ली.

एंकर - सर, बहुत कठिनाइयों के होते हुए आपने संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा ली तो क्या संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद आपकी परेशानी दूर हुई??

वक्ता - जी हाँ, सर जितनी भी मेरी पीड़ा थी ,  सांस फूलती थी और कैंसर का रोग था. डॉक्टर ने मुझे यही बोला था आप अगर ऑपरेशन नहीं कराओगे तो आपकी लास्ट स्टेज है  घर पर जाइए और बच्चों से बोलो आप की सेवा करें और आपका फिर कोई इलाज नहीं है. ये कैंसर आपका फूट जाएगा यह काफी बड़ा हो चुका है और आप स्वर्ग सिधार जाओगे.
लेकिन इतना पैसा मेरे पास नहीं था और मैं झक मार के घर आ गया और बड़ी मुश्किल से झक मार के में संत रामपाल जी की शरण में जब पहुंचा और नाम दीक्षा लेने के बाद मेरे दर्द में राहत मिली और दर्द में राहत मिलने के बाद धीरे-धीरे उस गांठ का पता ही नहीं वह गांठ कैसे घूलती चली गई! कैसे ठीक होती चली गई , परमात्मा ने किस प्रकार से उसका ऑपरेशन कर दिया , पड़ोसी भी कहने लगे कि देखो कैंसर सब को खाता है यह बंदा कैंसर को भी खा गया न जाने कहां से मंत्र सीख   कर आया है कैंसर का!
 देखो इसके पास कैंसर का मंत्र है इसको कैंसर हुई तो मीठी कैंसर हुई, दुनिया को कैंसर खाती है ये कैंसर को खा गया ऐसा इंसान आज तक हमने नहीं देखा.
ऐसे कह के लोग हंसने लगते हैं आज भी,   संत रामपाल जी की कृपा से मेरा कैंसर भी ठीक हो गया और सांस फूलना भी बंद हो गया जितनी भी परेशानी थी सारी दूर हो गई.  एक बच्ची मेरी बहुत बीमार रहती थी उसके ससुराल वालों ने जहां-तहां, डॉ अशोक पहा और ए के गुप्ता, डॉक्टर पटनी, से काफी इलाज कराया था लास्ट में उन्होंने कहा कि पैसा खर्च हम करेंगे जी,  आप इसको ले जाइए जहां भी आप कहेंगे जिन डॉक्टर से इलाज कराना चाहेंगे उनसे हम इलाज कराएंगे. और आप सलाह दीजिए हम हार चुके हैं थक चुके हैं. तो मैंने उनसे कहा कि देखिए जी मेरे यहां संत रामपाल जी से बढ़कर कोई भी डॉक्टर नहीं है, कोई भी परमेश्वर नहीं है, कोई भी वैद्य नहीं है जिन्होंने मेरा कैंसर ठीक किया है मेरा सांस फूलना कम किया है उनसे अलावा बढ़कर के वैद्य, हकीम, नीम कोई भी नहीं है.  वही मेरी परमेश्वर है आपकी इच्छा हो अगर ऐतराज ना हो तो बेटी को और दामाद को मेरे साथ भेजो और वहां से नाम दीक्षा लो यह ठीक हो जाएंगे. तो उन्होंने कहा कि आप अपनी बेटी को ले जाइए और लड़का हमारा बाद में ले लेगा.
तो मैं अपनी बच्ची को वहां लाया और बच्ची को वहां लाने के बाद नामदान दिलाया, और नाम दान लेने के बाद ही उसे राहत मिलती चली गई, राहत मिलने के बाद वह तुरंत ठीक हो गई. आज वह लड़की भी बिल्कुल स्वस्थ है और मैं भी बिल्कुल स्वस्थ हूं मुझे कोई परेशानी नहीं है. संत रामपाल जी की कृपा से संत रामपाल जी महाराज की शरण में आने से मेरे सारे लाभ हो गए और मेरे बच्चे ने प्रथम बार भर्ती देखी थी पहली भर्ती में ही मेरा बच्चा सीओडी में सिलेक्ट हो गया, जो कि कई बार भर्तियां देखते हैं बच्चे लेकिन नहीं आ पाते. संत रामपाल जी की कृपा से सारे काम हो गए और पता नहीं मैं एक साधारण आदमी हूं,  एक बच्ची मेरी बीकॉम कर रही है दूसरी b.a. कर रही है, तीसरी एंटर कर रही है और एक बच्चा मेरा हाई स्कूल में पढ़ रहा है इन सब का खर्चा कैसे चलता है मुझे नहीं पता? संत रामपाल जी महाराज  कहां से इनकी परवरिश करवा देते हैं कहां से कैसे व्यवस्था बना देते हैं, स्कूल के , ड्रेस की, फीस के , एडमिशन के, पुस्तक वगैरह, ट्यूशन वगैरा ,  कोचिंग वगैरा, इनके बहुत सारे खर्चे न जाने संत रामपाल जी महाराज कहां से सलटवा देते हैं.
कहां से पैसा आता है और मुझे दिखाई भी नहीं देता और सारे काम भी होते रहते हैं संत रामपाल जी महाराज की शरण में आने से पहले मैं इतना बीमार रहता था , इतना तंग रहता था कि सब्जी के लिए, नमक की थैली के लिए भी मेरे पास पैसे नहीं रहते थे. ₹60 मेरी घरवाली एक पड़ोसन से मांग कर लाई थी और उससे में केवल दर्द की गोली खाता था ज्यादा दवा नहीं आ पाती थी जो हरे पत्ते की डाइक्लोरम प्लस आती है. उसे दर्द के लिए दो-दो खा लेता था उससे मेरे दर्द में राहत मिल जाती थी उन्हें एक-एक  दो- दो महीने के लिए 60-60 रूपये  के लिए रखता था. और आज संत रामपाल जी महाराज की शरण में आने से न कोई बीमारी है, न कोई पैसे की तंगी है, न कोई किसी से झगड़ा होता है और शांति ही शांति प्राप्त हो रही है . धन्य है ऐसे गुरुदेव! धन्य है ऐसे परमेश्वर!

एंकर- सर आपकी स्थिति बहुत ही दयनीय थी आपके पास दवाई खाने के लिए भी पैसे नहीं थे फिर जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद आपका कैंसर ठीक हो गया. सर, आपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन बहुत ही गहराइयों से किया है तो सर, जगतगुरु  संत रामपाल जी महाराज मैं ऐसी क्या शक्ति है जो कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी बिना ऑपरेशन, बिना दवाई के केवल नाम दीक्षा लेने मात्र से ही ठीक कर रहे हैं??

वक्ता - संत रामपाल जी महाराज पूर्ण परमेश्वर हैं ,पूर्ण परमात्मा आए हुए हैं धरती पर, इनके अलावा दूसरा कोई परमात्मा नहीं है यह साकार परमात्मा और साहिब कबीर जी के रूप में आए हुए हैं.

एंकर - सर,  आप कैसे कह सकते हैं कि संत रामपाल जी महाराज पूर्ण संत है??

वक्ता - सर, जो डॉक्टरों से दवा नहीं हुई जो देवों की त्रिदेवों की भक्ति में बार-बार करता रहा उनसे मेरे पीड़ा बढ़ती गई ,तो और संत रामपाल जी की शरण में आने से केवल उन्होंने ऐसा मंत्र जाप दिया और उस मंत्र के लिए मैं ही नहीं मेरे सारे पड़ोसी भी कहते हैं कि मैं खेत में कुछ भी फेकता हूं , अपने गुरु जी से कोई ऐसा मंत्र सीख के आया है कि झूठे को फेकता है तो साचे को पैदा होती है. ये कोनसा मंत्र सीख के आया है,  तो मैं कैसे नहीं कहूं कि वह परमात्मा नहीं है ? वह परमात्मा है. संत रामपाल जी महाराज सभी शब्द ग्रंथों से प्रमाणित भक्ति देते हैं. सारे प्रमाण शास्त्रों में मिलते हैं और मतलब इसमें कोई शंका नहीं रहती है.

एंकर - सर, संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद आपको बहुत सारे लाभ प्राप्त हुए, तो जो दर्शक आज आपको देख रहे हैं वह भी किसी ना किसी तरीके से बहुत ज्यादा परेशान है उनके लिए आप क्या कहना चाहेंगे??

वक्ता - मैं भगत समाज को यही कहूंगा कि भक्तों मिलो , यह मौका न चूकने दो, धरती पर परमात्मा आए हुए हैं जल्दी ही इनकी शरण में आओ और सारे त्रिवेदी काल के दूतों से उनसे बचों जो भी तुम्हें ढोंगी बहकाये  हुए हैं. और मैं भी पीले कपड़े वालों के पीछे-पीछे घूमता था, पैर छूते रहता था उनको त्यागो वह काल के दूत है और उनसे दूर हट के संत रामपाल जी महाराज की शरण में आओ और अपनी मुक्ति कराओ.

एंकर - सर, संत रामपाल जी महाराज की शरण मे कैसे आ सकते हैं??

वक्ता - संत रामपाल जी महाराज की शरण में जब हम पुस्तक सेवा करने जाते हैं जगह-जगह , गांव-गांव पुस्तक सेवा करते हैं ,  ज्ञान गंगा नाम की एक पुस्तक है जिसमें सृष्टि रचना का भी सारा प्रमाण है और उसका अध्ययन करने से और कुछ भक्तों के सत्संग सुनने से जगह- जगह सत्संग भी होते हैं ज्ञान चर्चाएं भी होती है उनको सुनने से संत रामपाल जी महाराज की शरण में आ सकते हैं.

एंकर - धन्यवाद सर.
वक्ता - सत साहेब.

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कैंसर का मुफ्त इलाज संभव है टीबी एड्स जैसी सभी घातक बीमारियां पलक झपकते ही समाप्त होती है भूत प्रेत बाधाए आस पास फटकती भी नही है कंगाली से मुक्ति मिलती है आर्थिक स्थिति सामान्य होने लगती है ये सारे चमत्कार सम्भव है सिर्फ सद्भगति से
अगर आपके दिमाग मे ये विचार आ रहा हो कि भगति तो हम करते है सभी करते है पर फायदा नही मिल रहा तो इसलिए हमें आपको बताना चाहते है कि हमने सद्भगति शब्द लिखा है जिसका मतलब है प्रमाणित भगति, प्रमाणित कहा से, जी हां पवित्र वेदों और पवित्र गीताजी में जो भगति कहि गयी है उसी को करने से लाभ पूर्ण मिलता है सन्त रामपाल जी वही सत्य भगति दे रहे है बाकी पूरा समाज सिर्फ बढ़ो से सुनी सुनाई बाते से भगति में लगा है जो कि पूर्ण परमात्मा की नही है तो लाभ भी खुद ही नही मिलेगा।
सन्त रामपाल जी के ज्ञान को सुने उनके पवित्र संत्संग आप यूट्यूब पर सुन सकते है
संत रामपाल जी महाराज के सत्संग


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